Wednesday, November 12, 2014

Cooperative :Labor can and will become its own employer through co-operative association.

Labor can and will become its own employer through co-operative association. – Leland Stanford 


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Answer:
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Official site of Chief Minister office:http://upcmo.up.nic.in/

  

Official Site of UP Government : http://up.gov.in/

  

81 Departments Site: http://up.gov.in/allsites.aspx

  

Department site:http:http://cooperative.up.nic.in/

  
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परिचय      
सामान्य परिचय:-
देश एवं प्रदेश में सहकारिता आन्दोलन वर्ष 1904 में जनसाधारण विशेष रूप से ग्रामीण कृषकों के आर्थिक विकास हेतु अल्पकालीन फसली ऋण से प्रारम्भ हुआ था उस समय सहकारिता का मूल उद्देश्य कृषकों को फसल उत्पादन हेतु उचित ब्याज दर/शर्तों पर ऋण उपलबध कराकर उन्हें महजनों के चंगुल से मुक्त कराना था। कालान्तर में अल्कालीन ऋण के साथ-साथ उर्वरक बीज वितरण, प्रक्रिया इकाई/शीतगृह संचालन, उपभोक्ता वस्तुओं का वितरण, दीर्घकालीन ऋण वितरण, श्रमिकों का संगठन, दुग्ध विकास, गन्ना, उद्योग, आवास हथकरघा विकास आदि कार्यक्रम भी सहकारी समितियों के माध्यम से प्रारम्भ हो गये।
इस प्रकार सहकारी आन्दोलन/कार्यक्रमों का क्षेत्र विस्तृत एवं व्यापक हो जाने के कारण निबन्धक, सहकारी समितियों का अधिकार अन्य नौ विभागों यथा-गन्ना, उद्योग, खादी ग्रामोद्योग, आवास, दुग्ध, हथकरघा, मत्स्य, रेशम एवं उद्यान विभाग के अधिकारियों को भी प्रदान कर दिया गया है।
सहकारी समितियों का प्रबन्ध लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, जिससे जन सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।
सहकारिता के सिद्धान्त निम्नलिखित है:-
अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी संगठन द्वारा निम्नलिखित सात सहकारी सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं-
  1. स्वैच्छिक और खुली सदस्यता।
  2. प्रजातांत्रिक सदस्य-नियंत्रण।
  3. सदस्यों की आर्थिक भागीदारी।
  4. स्वायत्ता और स्वतंत्रता।
  5. शिक्षा प्रशिक्षण और सूचना।
  6. सहकारी समितियों में परस्पर सहयोग।
  7. सामाजिक कर्तव्य बोध।
सहकारी समितियों के स्तर
इस विभाग में सहकारी समितियों का निम्नवत् तीन स्तरीय ढाँचा कार्य कर रहा है:-
(1) प्रारम्भिक स्तर:-
इसमें न्याय पंचायत स्तर पर गठित प्रारम्भिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स) तथा अन्य प्रारम्भिक समितियां जैसे-क्रय-विक्रय, प्राइमरी उपभोक्ता भण्डार, सहकारी संघ इत्यादि होती है।
(2) केन्द्रीय स्तर:-इसके अन्तर्गत
1- जिला सहकारी बैंक
2- जिला सहकारी विकास संघ
3- केन्द्रीय उपभोक्ता भण्डार
इत्यादि होते हैं। इनका गठन सामान्यत: जिला स्तर पर होता है।
(3) शीर्ष स्तर:-इसके अन्तर्गत
1- उ०प्र० कोआपरेटिव बैंक (यू०पी०सी०बी०) लि०।
2- उ०प्र० सहकारी ग्राम विकास बैंक, लि०।
3- उ०प्र० सहाकारी संघ (पी०सी०एफ०), लि०।
4- उ०प्र० उपभोक्ता सहकारी संघ (यू०पी०एस०एस०), लि०।
5- उ०प्र० सहकारी विधायन एवं निर्माण सहकारी संघ (पैक्फेड), लि०।
6- उ०प्र० कोआपरेटिव यूनियन (पी०सी०यू०), लि०।
7- उ०प्र० श्रम एवं निर्माण सहकारी संघ लि० इत्यादि है।
इनका विस्तार सामान्यत: राज्यस्तरीय होता  है।
 
सहकारिता द्वारा जन साधारण को दी जाने वाली प्रमुख सुविधायें:-
प्रारम्भिक कृषि ऋण सहकारी समिति के माध्यम से नियमित भुगतान करने वाले कृषकों को राज्य सरकार के सहयोग से रू0 3.00 लाख तक का ऋण 3 प्रतिशत ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जाता है। ब्याज दर मे कमी होने के फलस्वरूप अन्तर की प्रतिपूर्ति प्रदेश सरकार द्वारा ब्याज अनुदान के रूप में की जाती है।
उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक द्वारा अपनी शाखाओं के माध्यम से कृषि एवं अकृषि क्षेत्र हेतु दीर्घ कालीन ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
प्रदेश के नगरीय सहकारी बैंक अपने कार्य क्षेत्र में उपभोक्ता ऋण, आवास ऋण, वाहन ऋण एवं रोजगार ऋण उपलब्ध कराते है।
किसानो को बिचैलियों के शोषण से बचाने के लिए उनकी कृषि उपज को सहकारी समिति द्वारा क्रय करके उनको उचित मूल्य दिलाया जाता है एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित मूल्य सर्मथन योजनान्र्तगत गेहू एवं धान की खरीद की जाती है।
सहकारी समितियो की वर्तमान भण्डारण क्षमता में वृद्वि किये जाने हेतु अतिरिक्त भण्डारण क्षमता का सृजन किया जा रहा है जिसके अन्र्तगत 100 मै0टन एवं 250 मै0टन क्षमता के गोदाम निर्मित कराये जा रहे है।
उर्वरक एवं बीज वितरण
विभाग एक नजर में
1- विभाग की उत्पत्तिवर्ष 1904 में हुआ था
2- कार्यकलाप1- सहकारी समितियों का निबन्धन।
2- सहकारी समितियों का पर्यवेक्षण, अंकेक्षण, निरीक्षण एवं जांच
3- सहकारी समितियों/सदस्यों के मध्य विवादों का निपटारा।
4- सहकारी समितियों का समापन, विलयन एवं विभाजन।
3- विभाग में लागू अधिनियम एवं नियम1- उ०प्र० सहकारी समिति अधिनियम,  1965
2- उ०प्र० सहकारी समिति नियमावली, 1968
विभाग का प्रशासनिक ढाँचा:-
मुख्यालय स्तर
आयुक्त एवं निबन्धक / अपर आयुक्त एवं अपर निबन्धक /  उप आयुक्त एवं उप निबन्धक / सहायक आयुक्त एवं सहायक निबन्धक / वित्त नियंत्रक / मुख्य तकनीकी अधिकारी / अभियन्ता / लेखाधिकारी आदि।
मण्डल स्तर
उप आयुक्त एवं उप निबन्धक / क्षेत्रीय सहायक आयुक्त एवं सहायक निबन्धक (उपभोक्ता/कृषि) / लेखाधिकारी / सहायक लेखाधिकारी।
जनपद स्तरजिला सहायक आयुक्त एवं सहायक निबन्धक / अतिरिक्त सहायक आयुक्त एवं सहायक निबन्धक।
तहसील स्तरअपर जिला सहकारी अधिकारी / सहकारी निरीक्षक वर्ग-1।
विकास खण्ड स्तरसहायक विकास अधिकारी (सहकारिता)।

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